दुआ मांगी थी, आशियाने की।
चल पड़ी आंधियां जमाने की।
मेरा दर्द कोई समझ नहीं पाया…
क्योंकि मेरी आदत थी, मुस्कुराने की।
तेरी मर्जी से ढल जाऊं
हर बार ये मुमकिन नहीं।
मेरा भी अपना वजूद है…
मैं कोई आईना नहीं।
नहीं बदल सकते हैं, हम
खुद को औरों के हिसाब से।
एक लिबास हमें भी दिया है, खुदा ने
अपने हिसाब से।
मैं खामोशी तेरे मन की
तू अनकहा अल्फाज मेरा…
मैं एक उलझा लम्हा
तू रूठा हुआ हालात मेरा।
हर सपना खुशी का पूरा नहीं होता।
कोई किसी के बिना अधूरा नहीं होता।
जो रोशन करता है, सब रातों को…
वो चांद भी हर बार पूरा नहीं होता।